फिल्म रिव्यू: गोरी तेरे प्यार में
एक्टर: करीना कपूर, इमरान खान, श्रद्धा कपूर, अनुपम खेर,ईशा गुप्ता (गेस्ट अपीयरेंस)
डायरेक्टर: पुनीत मल्होत्रा
ड्यूरेशन: 2 घंटे 27 मिनट
पांच में डेढ़ स्टार

2004 में नासा में काम करने वाला एक वैज्ञानिक मोहन अपनी दाई मां कावेरी अम्मा से मिलने भारत के एक गांव आता है. ये गांव पिछड़ेपन का शिकार है, यहां बिजली नहीं है और गांव वाले एक संगठित नेतृत्व और भविष्योन्मुखी सोच के अभाव में जातिगत भेदभाव और ऐसे ही दूसरे अंधेरों में जी रहे हैं. मोहन को यहां अपना बचपन की दोस्त गीता मिलती है और वह इंडिया की चमकती रोशनी से बाहर आ भारत को पहचानता है और इसको रोशन करने के लिए
गांव वालों के साथ मिलकर स्थानीय स्तर पर ही बिजली का उत्पादन करता है.
नौ साल बाद अमेरिका में पढ़ा एक आर्किटेक्ट श्रीराम फिर एक भारतीय गांव में पहुंचता है, जो एक पुल के अभाव में अनन्य कष्ट सह रहा है. श्रीराम के यहां आने की वजह है उसका एक्स प्यार दिया, जो एनजीओ टाइप है और गुजरात के इस गांव में गरीबों की सेवा कर रही है. अपने प्यार को वापस पाने के लिए श्रीराम किसी भी तरह से पुल बना देना चाहता है और इसी क्रम में जिंदगी के जरूरी सबक हासिल करता है. यहीं पर उसकी मुठभेड़ एक भ्रष्ट कलेक्टर से भी होती है, जिसका कलेवर पूरी तरह से नेताओं जैसा है.
पहले पैरा में आपने जो पढ़ा वह एक बेहद मानवीय और साहसिक सिनेमाई प्रयत्न स्वेदस था, जिसे गढ़ा था लगान फेम डायरेक्टर आशुतोष गोवारिकर ने. दूसरे पैरा में जिस कहानी का एक सिरा बताया गया है, वह है इस शुक्रवार को रिलीज हो रही फिल्म गोरी तेरे प्यार में, जिसके डायरेक्टर हैं आई हेट लव स्टोरीज फेम पुनीत मल्होत्रा. गोरी तेरे प्यार में बेहद कमजोर और घालमेल भरी कहानी का सिनेमाई रूपांतरण है, जिसका फर्स्ट हाफ, जो कि बेंगलुरु शहर में घटता है, कुछ काबिले बर्दाश्त है, मगर जैसे ही गोरी के प्यार में छोरा गांव पहुंचता है, सब गुड़ गोबर हो जाता है.
यहां ऐसे गांव बनाया और दिखाया जाता है, जैसे कोई विलायती बाबू जो पेशे से सेट डिजाइनर हो, किसी पेंटिंग और कुछ एक साठ के दशक में भारत पर बनाई गई डॉक्यमेंट्री फिल्में देखने के बाद गांव की कल्पना कर रहा हो. गांव में जगह का बेहद अकाल है, शायद इसीलिए सब कुछ इस तरह से सजाया गया है, जैसे एक लालची रियल एस्टेट एजेंट ने शूटिंग के लिए बहुत छोटा टुकड़ा दिया हो. एक ही जगह में भयानक घोच-पौच. वहीं भैंस बंधी है, उसी के बगल में सूप फटका जा रहा है, उसी के बगल में बैलगाड़ी खड़ी है और वहीं तमाशबीनों की भीड़ लगी है, जो एक सामान्य शहरी बालक को यूं निहार रहे हैं, गोया रोशन की फिल्म का जादू उनके बीच उतर आया हो.
फिल्म की कहानी को भी दुरुस्त होने के लिए किसी जादू की जरूरत प्रतीत होती है. कहानी कुछ यूं है कि दक्षिण भारतीय संस्कारी परिवार का एक महा दिलफेंक लड़का श्रीराम है. जिसका परिवार और काम की तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं और बस सब हुनर रात की पार्टी में नाचने और कन्या को आकर्षित करने में खर्च हुआ जाता है. मगर फिर उसकी मुलाकात अपनी गर्लफ्रेंड की रिश्तेदार दिया से होती है और ये प्यार में बदल जाती है.
नाम के अंतर्विरोध और इस लव कनेक्शन पर मत जाइए. अभी और भी झटके हैं. दिया और श्रीराम की लव स्टोरी इस प्वाइंट पर आकर टकराती है कि दिया को देश की समझ है और वह पिछड़ों के लिए कुछ करना चाहती है और करती भी रहती है. जबकि श्रीराम को ये सब उपदेश और ढोंग वाली बातें लगती हैं और उसका मानना है कि दिया को कुछ चिल करना चाहिए. नतीजतन, ब्रेकअप हो जाता है और श्रीराम के हाथ बचता है एक केकड़ा, जो एक रेस्तरां में उस वक्त उसके पल्ले पड़ा, जब दिया ने उसे शाकाहार पर ज्ञान दिया. अब श्रीराम है और उसके सामने एक और खूबसूरत संस्कारी तमिल लड़की है, जिससे उसकी शादी तय हो गई है. मगर ये लड़की तो किसी पंजाबी मुंडे से प्यार करती है. श्रीराम को केकड़े के मरने के बाद अपने टूटे तागे का इल्हाम होता है और वह अपनी दिया की बाती बचाने उस गुजराती गांव पहुंच जाते हैं, जहां वह देस के लिए काम कर रही है.
फिल्म में इमरान खान की एक्टिंग ऐसी है कि एक क्या हजार केकड़े बोरियत से मर जाएं, हम तो फिर भी इंसान हैं. करीना कपूर की एक्टिंग ठीक है, मगर फिल्म की कहानी में उनके क्या, किसी के लिए भी ज्यादा गुंजाइश नहीं थी. दूसरी लड़की के रोल में श्रद्धा कपूर भावप्रवणता की संभावनाएं दिखाती नजर आई हैं. ये लड़की टिकेगी इस इंडस्ट्री में, ऐसा लगता है. बाकी सब जो हैं, सो हैं. मसलन, अनुपम खेर जो गांव वाले इलाके के कलेक्टर बने हैं. मगर पद पर मत जाइए, ऐसा कलेक्टर आपको खोजे से भी न मिलेगा. हां नेता भतेरे मिल जाएंगे.
कहानी कमजोर है, तो डायरेक्शन भी मायोपिया का शिकार है. पुनीत मल्होत्रा महंगी कारों और अच्छे कपड़ों वाले कन्फ्यूज युवाओं की लव स्टोरी की चौहद्दी में ही हाथ पांव मारें तो शायद कुछ ठीक सी मसाला फिल्में बना पाएं. फिल्म में संगीत विशाल शेखर का है और गाने अलग से सुने-देखे जाएं तो ठीक लगें भी, मगर यहां वे फिल्म का बंटाधार होने से नहीं बचा पाते. शुरुआत में ईशा गुप्ता के साथ क्लब में धत तेरे की गाना आता है, जहां हमारे महानायक श्रीराम का चरित्र चित्रण होता है. टूह टूह गाने में कूल्हों की नाजुक सुंदरता को गीतकार कुमार ने अपने खिलंदड़ पंजाबी अंदाज में बयान किया है और कमाल है इस पल पल आहत होने वाले देश का, कि किसी को अभी तक ऐतराज नहीं हुआ इस पर. उसी तरह से एक बेहद पिछड़े गांव में चिंगम चबाके गाने पर थिरकते गांव वालों को देखकर भी आप अचरज में न घिरें क्योंकि छोरी छिछोरी है, छोरा भी छिछोरा है और अब फिल्मी गांव में इन्हीं सब चीजों का ढिंढोरा है.
लोकेशन का तो मैंने आपको बताया ही कि गांव गांव नहीं एक भद्दा मजाक लगते हैं. वैसे फिल्म अपने तईं मजाक करने की भरपूर कोशिश करती है, मगर ऐसा कम ही मौकों पर मुकम्मल ढंग से हो पाता है. गोरी तेरे प्यार में, लुट गए हम बाजार में गाते हुए बाहर निकलेंगे आप, अगर अच्छे सिनेमा की समझ और शौक रखते हैं. अगर फूहड़पन बर्दाश्त हो सकता है, बड़े पर्दे पर मचकाऊ गाने और बड़े स्टारों को देखने का शौक है और गांव में चिल करने का फिल्मी इरादा है, तो ये फिल्म आपके लिए है.

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